Saturday 26 May 2012

MADHUSHALA BY HARIVANS RAI BACHCHHAN


मधुशाला
मृद भावों के अंगूरों की आज बना लाया हालाु, िूयतम, अपने ही हाथों से आज िपलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा िफर ूसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा ःवागत करती मेरी मधुशाला।।१। प्यास तुझे तो, िवश्व तपाकर पूणर् िनकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका, आज िनछावर कर दँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।ू२। िूयतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला, अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला, मैं तुझको छक छलका करता, मःत मुझे पी तू होता, एक दसरेू की हम दोनों आज परःपर मधुशाला।।३। भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, किव साकी बनकर आया है भरकर किवता का प्याला, कभी न कण-भर खाली होगा लाख िपएँ, दो लाख िपएँ! पाठकगण हैं पीनेवाले, पुःतक मेरी मधुशाला।।४। मधुर भावनाओं की सुमधुर िनत्य बनाता हँ हालाू, भरता हँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्यालाू, उठा कल्पना के हाथों से ःवयं उसे पी जाता हँू, अपने ही में हँ मैं साकीू, पीनेवाला, मधुशाला।।५।
मिदरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला, 'िकस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला, अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हँ ू- 'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६। चलने ही चलने में िकतना जीवन, हाय, िबता डाला! 'दर अभी हैू', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला, िहम्मत है न बढँ आगे को साहस है न िफरुँ पीछेू, िकंकतर्व्यिवमूढ़ मुझे कर दर खड़ी है मधुशाला।।ू७। मुख से तू अिवरत कहता जा मधु, मिदरा, मादक हाला, हाथों में अनुभव करता जा एक लिलत किल्पत प्याला, ध्यान िकए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का, और बढ़ा चल, पिथक, न तुझको दर लगेगी मधुशाला।।ू८। मिदरा पीने की अिभलाषा ही बन जाए जब हाला, अधरों की आतुरता में ही जब आभािसत हो प्याला, बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे, रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे िमलेगी मधुशाला।।९। सुन, कलक􀂿 , छलछ􀂿 मधुघट से िगरती प्यालों में हाला, सुन, रूनझुन रूनझुन चल िवतरण करती मधु साकीबाला, बस आ पहंचेु, दर नहीं कुछु, चार कदम अब चलना है, चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।
जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला, वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला, डाँट डपट मधुिवबेता की ध्विनत पखावज करती है, मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११। मेंहदी रंिजत मृदल हथेली परु मािणक मधु का प्याला, अंगूरी अवगुंठन डाले ःवणर् वणर् साकीबाला, पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले, इन्िधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२। हाथों में आने से पहले नाज़ िदखाएगा प्याला, अधरों पर आने से पहले अदा िदखाएगी हाला, बहतेरे इनकार करेगा साुकी आने से पहले, पिथक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३। लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला, फेिनल मिदरा है, मत इसको कह देना उर का छाला, ददर् नशा है इस मिदरा का िवगत ःमृितयाँ साकी हैं, पीड़ा में आनंद िजसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४। जगती की शीतल हाला सी पिथक, नहीं मेरी हाला, जगती के ठंडे प्याले सा पिथक, नहीं मेरा प्याला, ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की किवता है, जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५। बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छते ही होंठ जला देनेवाूला, 'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद िमले' ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६। धमर्मन्थ सब जला चुकी है, िजसके अंतर की ज्वाला, मंिदर, मसिजद, िगिरजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला, पंिडत, मोिमन, पािदरयों के फंदों को जो काट चुका, कर सकती है आज उसी का ःवागत मेरी मधुशाला।।१७। लालाियत अधरों से िजसने, हाय, नहीं चूमी हाला, हषर्-िवकंिपत कर से िजसने, हा, न छआ मधु का प्यालाु, हाथ पकड़ लिज्जत साकी को पास नहीं िजसने खींचा, व्यथर् सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८। बने पुजारी ूेमी साकी, गंगाजल पावन हाला, रहे फेरता अिवरत गित से मधु के प्यालों की माला' 'और िलये जा, और पीये जा', इसी मंऽ का जाप करे' मैं िशव की ूितमा बन बैठंू, मंिदर हो यह मधुशाला।।१९। बजी न मंिदर में घिड़याली, चढ़ी न ूितमा पर माला, बैठा अपने भवन मुअिज्ज़न देकर मिःजद में ताला, लुटे ख़जाने नरिपतयों के िगरीं गढ़ों की दीवारें, रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०। बड़े बड़े िपरवार िमटें यों, एक न हो रोनेवाला, हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ िथरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलआमी सो जाए, जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।।२१। सब िमट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला, सूखें सब रस, बने रहेंगे, िकन्तु, हलाहल औ' हाला, धूमधाम औ' चहल पहल के ःथान सभी सुनसान बनें, झगा करेगा अिवरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।२२। भुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, मदचंचल प्याला, छैल छबीला, रिसया साकी, अलबेला पीनेवाला, पटे कहाँ से, मधु औ' जग की जोड़ी ठीक नहीं, जग जजर्र ूितदन, ूितक्षण, पर िनत्य नवेली मधुशाला।।२३। िबना िपये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला, पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला, दास िोिहयों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की, िवश्विवजियनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।२४। हरा भरा रहता मिदरालय, जग पर पड़ जाए पाला, वहाँ मुहरर्म का तम छाए, यहाँ होिलका की ज्वाला, ःवगर् लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दख क्या जानेु, पढ़े मिसर्या दिनया सारीु, ईद मनाती मधुशाला।।२५। एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला, एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला, दिनयावालोंु, िकन्तु, िकसी िदन आ मिदरालय में देखो,
िदन को होली, रात िदवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।२६। नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला, कौन अिपिरचत उस साकी से, िजसने दध िपला पालाू, जीवन पाकर मानव पीकर मःत रहे, इस कारण ही, जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।।२७। बनी रहें अंगूर लताएँ िजनसे िमलती है हाला, बनी रहे वह िमटटी िजससे बनता है मधु का प्याला, बनी रहे वह मिदर िपपासा तृप्त न जो होना जाने, बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला।।२८। सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यिद साकीबाला, मंगल और अमंगल समझे मःती में क्या मतवाला, िमऽों, मेरी क्षेम न पूछो आकर, पर मधुशाला की, कहा करो 'जय राम' न िमलकर, कहा करो 'जय मधुशाला'।।२९। सूयर् बने मधु का िवबेता, िसंधु बने घट, जल, हाला, बादल बन-बन आए साकी, भूिम बने मधु का प्याला, झड़ी लगाकर बरसे मिदरा िरमिझम, िरमिझम, िरमिझम कर, बेिल, िवटप, तृण बन मैं पीऊँ, वषार् ऋतु हो मधुशाला।।३०। तारक मिणयों से सिज्जत नभ बन जाए मधु का प्याला, सीधा करके भर दी जाए उसमें सागरजल हाला, मज्ञल्तऌ◌ा समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए, फैले हों जो सागर तट से िवश्व बने यह मधुशाला।।३१।
अधरों पर हो कोई भी रस िजहवा पर लगती हाला, भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला, हर सूरत साकी की सूरत में पिरवितर्त हो जाती, आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।।३२। पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला, भरी हई है िजसके अंदर िपरमलु-मधु-सुिरभत हाला, माँग माँगकर ॅमरों के दल रस की मिदरा पीते हैं, झूम झपक मद-झंिपत होते, उपवन क्या है मधुशाला!।३३। ूित रसाल तरू साकी सा है, ूित मंजिरका है प्याला, छलक रही है िजसके बाहर मादक सौरभ की हाला, छक िजसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।।३४। मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला भर भरकर है अिनल िपलाता बनकर मधु-मद-मतवाला, हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लिरयाँ, छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला।।३५। साकी बन आती है ूातः जब अरुणा ऊषा बाला, तारक-मिण-मंिडत चादर दे मोल धरा लेती हाला, अगिणत कर-िकरणों से िजसको पी, खग पागल हो गाते, ूित ूभात में पूणर् ूकृित में मुिखरत होती मधुशाला।।३६।
उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला, बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली िनत्य ढला जाती हाला, जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर िमट जाते सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।।३७। अंधकार है मधुिवबेता, सुन्दर साकी शिशबाला िकरण िकरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला, पीकर िजसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।३८। िकसी ओर मैं आँखें फेरूँ, िदखलाई देती हाला िकसी ओर मैं आँखें फेरूँ, िदखलाई देता प्याला, िकसी ओर मैं देखूं, मुझको िदखलाई देता साकी िकसी ओर देखूं, िदखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।।३९। साकी बन मुरली आई साथ िलए कर में प्याला, िजनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला, योिगराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए, देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।।४०। वादक बन मधु का िवबेता लाया सुर-सुमधुर-हाला, रािगिनयाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला, िवबेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में, पान कराती ौोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१। िचऽकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
िजसमें भरकर पान कराता वह बह रसु-रंगी हाला, मन के िचऽ िजसे पी-पीकर रंग-िबरंगे हो जाते, िचऽपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।४२। घन ँयामल अंगूर लता से िखंच िखंच यह आती हाला, अरूण-कमल-कोमल किलयों की प्याली, फूलों का प्याला, लोल िहलोरें साकी बन बन मािणक मधु से भर जातीं, हंस मज्ञल्तऌ◌ा होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।४३। िहम ौेणी अंगूर लता-सी फैली, िहम जल है हाला, चंचल निदयाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला, कोमल कूर-करों में अपने छलकाती िनिशिदन चलतीं, पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।४४। धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रिक्तम हाला, वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला, अित उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता, ःवतंऽता है तृिषत कािलका बिलवेदी है मधुशाला।।४५। दतकारा मिःजद ने मुझको कहकर है पीनेवालाु, ठकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्यालाु, कहाँ िठकाना िमलता जग में भला अभागे कािफर को? शरणःथल बनकर न मुझे यिद अपना लेती मधुशाला।।४६। पिथक बना मैं घूम रहा हँू, सभी जगह िमलती हाला, सभी जगह िमल जाता साकी, सभी जगह िमलता प्याला,
मुझे ठहरने का, हे िमऽों, कष्ट नहीं कुछ भी होता, िमले न मंिदर, िमले न मिःजद, िमल जाती है मधुशाला।।४७। सजें न मिःजद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला, सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला, शेख, कहाँ तुलना हो सकती मिःजद की मिदरालय से िचर िवधवा है मिःजद तेरी, सदा सुहािगन मधुशाला।।४८। बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला, गाज िगरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला, शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहँ तो मिःजद कोू अभी युगों तक िसखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।४९। मुसलमान औ' िहन्द है दोू, एक, मगर, उनका प्याला, एक, मगर, उनका मिदरालय, एक, मगर, उनकी हाला, दोनों रहते एक न जब तक मिःजद मिन्दर में जाते, बैर बढ़ाते मिःजद मिन्दर मेल कराती मधुशाला!।५०। कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंिडत जपता माला, बैर भाव चाहे िजतना हो मिदरा से रखनेवाला, एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर िनकले, देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।५१। और रसों में ःवाद तभी तक, दर जभी तक है हालाू, इतरा लें सब पाऽ न जब तक, आगे आता है प्याला, कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मिःजद मिन्दर में
घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।५२। आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला, आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला, होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, िफर जहाँ अभी हैं मनि◌दर मिःजद वहाँ बनेगी मधुशाला।।्५३। यज्ञ अिग्न सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला, ऋिष सा ध्यान लगा बैठा है हर मिदरा पीने वाला, मुिन कन्याओं सी मधुघट ले िफरतीं साकीबालाएँ, िकसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।५४। सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला, िोणकलश िजसको कहते थे, आज वही मधुघट आला, वेिदविहत यह रःम न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों, युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।५५। वही वारूणी जो थी सागर मथकर िनकली अब हाला, रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला', देव अदेव िजसे ले आए, संत महंत िमटा देंगे! िकसमें िकतना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६। कभी न सुन पड़ता, 'इसने, हा, छ दी मेरी हालाू', कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला', सभी जाित के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं, सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।५७।
ौम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला, सबक बड़ा तुम सीख चुके यिद सीखा रहना मतवाला, व्यथर् बने जाते हो िहरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे, ठकराते िहर मंि◌दरवालेु, पलक िबछाती मधुशाला।।५८। एक तरह से सबका ःवागत करती है साकीबाला, अज्ञ िवज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला, रंक राव में भेद हआ है कभी नहीं मिदरालय मेंु, साम्यवाद की ूथम ूचारक है यह मेरी मधुशाला।।५९। बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला, समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला, हो तो लेने दो ऐ साकी दर ूथम संकोचों कोू, मेरे ही ःवर से िफर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।६०। कल? कल पर िवश्वास िकया कब करता है पीनेवाला हो सकते कल कर जड़ िजनसे िफर िफर आज उठा प्याला, आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है, कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुिटल की मधुशाला।।६१। आज िमला अवसर, तब िफर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला आज िमला मौका, तब िफर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला, छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ, एक बार ही तो िमलनी है जीवन की यह मधुशाला।।६२।
आज सजीव बना लो, ूेयसी, अपने अधरों का प्याला, भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला, और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ, अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले ूणय की मधुशाला।।६३। सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला छलक रही है िजसमं◌े मािणक रूप मधुर मादक हाला, मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हँू जहाँ कहीं िमल बैठे हम तु􀂼 वहीं गयी हो मधुशाला।।६४। दो िदन ही मधु मुझे िपलाकर ऊब उठी साकीबाला, भरकर अब िखसका देती है वह मेरे आगे प्याला, नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय िपलाना दर हआूु, अब तो कर देती है केवल फ़ज़र् -अदाई मधुशाला।।६५। छोटे-से जीवन में िकतना प्यार करुँ, पी लूँ हाला, आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला', ःवागत के ही साथ िवदा की होती देखी तैयारी, बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६। क्या पीना, िनद्वर्न्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला, क्या जीना, िनरंि◌चत न जब तक साथ रहे साकीबाला, खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे, िमलने का आनंद न देती िमलकर के भी मधुशाला।।६७। मुझे िपलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!
मुझे िदखाने को लाए हो एक यही िछछला प्याला! इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ, िसंधँ◌ु-तृषा दी िकसने रचकर िबंदु-बराबर मधुशाला।।६८। क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला, क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला, थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को, प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।६९। िलखी भाग्य में िजतनी बस उतनी ही पाएगा हाला, िलखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला, लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का, िलखी भाग्य में जो तेरे बस वही िमलेगी मधुशाला।।७०। कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला, दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टटा फूटा प्यालाू, मैं तो सॄ इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी, जब न रहँगा मैंू, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।।७१। ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ िदया जब पी हाला, गौरव भूला, आया कर में जब से िमट्टी का प्याला, साकी की अंदाज़ भरी िझड़की में क्या अपमान धरा, दिनया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।।ु७२। क्षीण, क्षुि, क्षणभंगुर, दबर्ल मानव िमटटी का प्यालाु, भरी हई है िजसके अंदर कटुु-मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है िनदर्य साकी अपने शत-शत कर फैला, काल ूबल है पीनेवाला, संसृित है यह मधुशाला।।७३। प्याले सा गढ़ हमें िकसी ने भर दी जीवन की हाला, नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला, जब जीवन का ददर् उभरता उसे दबाते प्याले से, जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।।७४। अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला, क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला, तब तो मिदरा खूब िखंचेगी और िपएगा भी कोई, हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।७५। यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला, पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला, बूर, कठोर, कुिटल, कुिवचारी, अन्यायी यमराजों के डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।७६। यिद इन अधरों से दो बातें ूेम भरी करती हाला, यिद इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला, हािन बता, जग, तेरी क्या है, व्यथर् मुझे बदनाम न कर, मेरे टटे िदल का है बस एक िखलौना मधुशाला।।ू७७। याद न आए दखमय जीवन इससे पी लेता हालाू, जग िचंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला, शौक, साध के और ःवाद के हेतु िपया जग करता है,
पर मै वह रोगी हँ िजसकी एक दवा है मधुशाला।।ू७८। िगरती जाती है िदन ूितदन ूणयनी ूाणों की हाला भग्न हआ जाता िदन ूितदन सुभगे मेरा तन प्यालाु, रूठ रहा है मुझसे रूपसी, िदन िदन यौवन का साकी सूख रही है िदन िदन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।७९। यम आयेगा साकी बनकर साथ िलए काली हाला, पी न होश में िफर आएगा सुरा-िवसुध यह मतवाला, यह अंि◌तम बेहोशी, अंितम साकी, अंितम प्याला है, पिथक, प्यार से पीना इसको िफर न िमलेगी मधुशाला।८०। ढलक रही है तन के घट से, संिगनी जब जीवन हाला पऽ गरल का ले जब अंितम साकी है आनेवाला, हाथ ःपशर् भूले प्याले का, ःवाद सुरा जीव्हा भूले कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला।।८१। मेरे अधरों पर हो अंि◌तम वःतु न तुलसीदल प्याला मेरी जीव्हा पर हो अंितम वःतु न गंगाजल हाला, मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।८२। मेरे शव पर वह रोये, हो िजसके आंसू में हाला आह भरे वो, जो हो सुिरभत मिदरा पी कर मतवाला, दे मुझको वो कान्धा िजनके पग मद डगमग होते हों और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३।
और िचता पर जाये उंढेला पऽ न ियत का, पर प्याला कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला, ूाण िूये यिद ौाध करो तुम मेरा तो ऐसे करना पीने वालां◌े को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।८४। नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला काम ढालना, और ढालना सबको मिदरा का प्याला, जाित िूये, पूछे यिद कोई कह देना दीवानों की धमर् बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।८५। ज्ञात हआ यम आने को है ले अपनी काली हालाु, पंि◌डत अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला, और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला, िकन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला।।८६। यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला, चलने दे साकी को मेरे साथ िलए कर में प्याला, ःवगर्, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल, ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यिद मधुशाला।।८७। पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों - साकी बाला, िनत्य िपलानेवाला प्याला, पी जानेवाली हाला, साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है, कैद जहाँ मैं हँू, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।८८।
शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर िकस उर की ज्वाला, 'और, और' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला, िकतनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता! िकतने अरमानों की बनकर कॄ खड़ी है मधुशाला।।८९। जो हाला मैं चाह रहा था, वह न िमली मुझको हाला, जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न िमला मुझको प्याला, िजस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न िमला साकी, िजसके पीछे था मैं पागल, हा न िमली वह मधुशाला!।९०। देख रहा हँ अपने आगे कब से मािणकू-सी हाला, देख रहा हँ अपने आगे कब से कंचन का प्यालाू, 'बस अब पाया!'- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे, िकंतु रही है दर िक्षितजू-सी मुझसे मेरी मधुशाला।।९१। कभी िनराशा का तम िघरता, िछप जाता मधु का प्याला, िछप जाती मिदरा की आभा, िछप जाती साकीबाला, कभी उजाला आशा करके प्याला िफर चमका जाती, आँिखमचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।।९२। 'आ आगे' कहकर कर पीछे कर लेती साकीबाला, होंठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती प्याला, नहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी, बढ़ा बढ़ाकर मुझको आगे, पीछे हटती मधुशाला।।९३। हाथों में आने-आने में, हाय, िफसल जाता प्याला,
अधरों पर आने-आने में हाय, ढलक जाती हालाु, दिनयावालोु, आकर मेरी िकःमत की ख़ूबी देखो, रह-रह जाती है बस मुझको िमलते-ि◌मलते मधुशाला।।९४। ूाप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं िफर क्यों हाला, ूाप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं िफर क्यों प्याला, दर न इतनी िहम्मत हारुँू, पास न इतनी पा जाऊँ, व्यथर् मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला।।९५। िमले न, पर, ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला, िमले न, पर, तरसा तरसाकर क्यों तड़पाता है प्याला, हाय, िनयित की िवषम लेखनी मःतक पर यह खोद गई 'दर रहेगी मधु की धाराू, पास रहेगी मधुशाला!'।९६। मिदरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला, यत्न सिहत भरता हँू, कोई िकंतु उलट देता प्याला, मानव-बल के आगे िनबर्ल भाग्य, सुना िवद्यालय में, 'भाग्य ूबल, मानव िनबर्ल' का पाठ पढ़ाती मधुशाला।।९७। िकःमत में था खाली खप्पर, खोज रहा था मैं प्याला, ढँढ़ रहा था मैं मृगनयनीू, िकःमत में थी मृगछाला, िकसने अपना भाग्य समझने में मुझसा धोखा खाया, िकःमत में था अवघट मरघट, ढँढ़ रहा था मधुशाला।।ू९८। उस प्याले से प्यार मुझे जो दर हथेली से प्यालाू, उस हाला से चाव मुझे जो दर अधर से है हालाू,
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में! पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।९९। साकी के पास है ितनक सी ौी, सुख, संिपत की हाला, सब जग है पीने को आतुर ले ले िकःमत का प्याला, रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहतेरे दबकर मरतेु, जीवन का संघषर् नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।।१००। साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला, क्यों पीने की अिभलषा से, करते सबको मतवाला, हम िपस िपसकर मरते हैं, तुम िछप िछपकर मुसकाते हो, हाय, हमारी पीड़ा से है बीड़ा करती मधुशाला।।१०१। साकी, मर खपकर यिद कोई आगे कर पाया प्याला, पी पाया केवल दो बूंदों से न अिधक तेरी हाला, जीवन भर का, हाय, िपरौम लूट िलया दो बूंदों ने, भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२। िजसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला, िजसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला, मतवालों की िजहवा से हैं कभी िनकलते शाप नहीं, दखी बनाय िजसने मुझको सुखी रहे वहु मधुशाला!।१०३। नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला, नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला, साकी, मेरी ओर न देखो मुझको ितनक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हँ मधुशाला।।ू१०४। मद, मिदरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हँ मतवालाू, क्या गित होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला, साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा, प्यासा ही मैं मःत, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५। क्या मुझको आवँयकता है साकी से माँगूँ हाला, क्या मुझको आवँयकता है साकी से चाहँ प्यालाू, पीकर मिदरा मःत हआ तो प्यार िकया क्याु मिदरा से! मैं तो पागल हो उठता हँ सुन लेता यिद मधुशाला।।ू१०६। देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला, देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला, समझ मनुज की दबर्लता मैं कहा नहीं कुछ भी करताु, िकन्तु ःवयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७। एक समय संतुष्ट बहत था पा मैं थोड़ीु-सी हाला, भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला, छोटे-से इस जग की मेरे ःवगर् बलाएँ लेता था, िवःतृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८। बहतेरे मिदरालय देखेु, बहतेरी देखी हालाु, भाँि◌त भाँि◌त का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला, एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार िकया, जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।
एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला, एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला, एक समय पीनेवाले, साकी आिलंगन करते थे, आज बनी हँ िनजर्न मरघटू, एक समय थी मधुशाला।।११०। जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला, छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला, आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते, कहो न िवरही मुझको, मैं हँ चलती िफरती मधुशालाू!।१११। िकतनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला, िकतनी जल्दी िघसने लगता हाथों में आकर प्याला, िकतनी जल्दी साकी का आकषर्ण घटने लगता है, ूात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२। बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला, कभी हाथ से िछन जाएगा तेरा यह मादक प्याला, पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना, मेरे भी गुण यों ही गाती एक िदवस थी मधुशाला।।११३। छोड़ा मैंने पथ मतों को तब कहलाया मतवाला, चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला, अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे िफरती है, क्या कारण? अब छोड़ िदया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।
यह न समझना, िपया हलाहल मैंने, जब न िमली हाला, तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला, जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५। िकतनी आई और गई पी इस मिदरालय में हाला, टट चुकी अब तक िकतने ही मादक प्यालों की मालाू, िकतने साकी अपना अपना काम खतम कर दर गएू, िकतने पीनेवाले आए, िकन्तु वही है मधुशाला।।११६। िकतने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला, िकतने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला, िकतनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी, िकतने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।११७। दर दर घूम रहा था जब मैं िचल्लाता - हाला! हाला! मुझे न िमलता था मिदरालय, मुझे न िमलता था प्याला, िमलन हआु, पर नहीं िमलनसुख िलखा हआ था िकःमत मेंु, मैं अब जमकर बैठ गया हँ◌ू, घूम रही है मधुशाला।।११८। मैं मिदरालय के अंदर हँू, मेरे हाथों में प्याला, प्याले में मिदरालय िबंि◌बत करनेवाली है हाला, इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया - मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९। िकसे नहीं पीने से नाता, िकसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मिदरालय में तरह-तरह की है हाला, अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते, एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।१२०। वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला, िजसमें मैं िबंि◌बत-ूितबंि◌बत ूितपल, वह मेरा प्याला, मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मिदरा बेची जाती है, भेंट जहाँ मःती की िमलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१। मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला, पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग िदया प्याला, साकी से िमल, साकी में िमल अपनापन मैं भूल गया, िमल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।१२२। मिदरालय के द्वार ठोंकता िकःमत का छंछा प्याला, गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला, िकतनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया! बंद हो गई िकतनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।१२३। कहाँ गया वह ःविगर्क साकी, कहाँ गयी सुिरभत हाला, कहँ◌ा गया ःविपनल मिदरालय, कहाँ गया ःविणर्म प्याला! पीनेवालों ने मिदरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना? फूट चुका जब मधु का प्याला, टट चुकी जब मधुशाला।।ू१२४। अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हई अपनी हालाु, अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हआ अपना प्यालाु,
िफर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उज्ञल्तऌ◌ार पाया - अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।१२५। 'मय' को करके शुद्ध िदया अब नाम गया उसको, 'हाला' 'मीना' को 'मधुपाऽ' िदया 'सागर' को नाम गया 'प्याला', क्यों न मौलवी चौंकें, िबचकें ितलक-िऽपुंडी पंि◌डत जी 'मय-मिहफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।१२६। िकतने ममर् जता जाती है बार-बार आकर हाला, िकतने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला, िकतने अथोर्ं को संकेतों से बतला जाता साकी, िफर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।१२७। िजतनी िदल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला, िजतनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला, िजतनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है, िजतना ही जो िरसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।१२८। िजन अधरों को छएु, बना दे मःत उन्हें मेरी हाला, िजस कर को छ◌ू देू, कर दे िविक्षप्त उसे मेरा प्याला, आँख चार हों िजसकी मेरे साकी से दीवाना हो, पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।१२९। हर िजहवा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला हर घर में चचार् अब होगी मेरे मधुिवबेता की
हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुिरभत मधुशाला।।१३०। मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला, मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला, मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा, िजसकी जैसी रुि◌च थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।१३१। यह मिदरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला, यह मिदरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला, िकसी समय की सुखदःमृित है साकी बनकर नाच रही, नहीं-नहीं िकव का हृदयांगण, यह िवरहाकुल मधुशाला।।१३२। कुचल हसरतें िकतनी अपनी, हाय, बना पाया हाला, िकतने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला! पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा, िकतने मन के महल ढहे तब खड़ी हई यह मधुशालाु!।१३३। िवश्व तुम्हारे िवषमय जीवन में ला पाएगी हाला यिद थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला, शून्य तुम्हारी घिड़याँ कुछ भी यिद यह गुंिजत कर पाई, जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।१३४। बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला, िकलत कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला, मान-दलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी कोु, िवश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हँू मधुशाला।।१३५।
िपिरशष्ट से ःवयं नहीं पीता, औरों को, िकन्तु िपला देता हाला, ःवयं नहीं छताू, औरों को, पर पकड़ा देता प्याला, पर उपदेश कुशल बहतेरों से मैंने यह सीखा हैु, ःवयं नहीं जाता, औरों को पहंचा देता मधुशाला।ु मैं कायःथ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला, मेरे तन के लोह में है पचहज्ञल्तऌ◌ार ूितशत हालाू, पुँतैनी अिधकार मुझे है मिदरालय के आँगन पर, मेरे दादों परदादों के हाथ िबकी थी मधुशाला। बहतों के िसर चार िदनों तक चढ़कर उतर गई हालाु, बहतों के हाथों में दो िदन छलक झलक रीता प्यालाु, पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला। िपऽ पक्ष में पुऽ उठाना अध्यर् न कर में, पर प्याला बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला िकसी जगह की िमटटी भीगे, तृिप्त मुझे िमल जाएगी तपर्ण अपर्ण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।

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